Kathak’s priestess Kumudini Lakhia is no more : भारतीय शास्त्रीय नृत्य की अग्रणी हस्तियों में शामिल और कथक को समकालीन रंग देने वाली प्रसिद्ध नृत्यांगना कुमुदिनी लाखिया का शनिवार को अहमदाबाद में 95 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। वे अपनी बेटी और नृत्यांगना मैत्रेयी हट्टंगड़ी के साथ रह रही थीं।
लाखिया ने कथक को राजदरबारों की सीमाओं से निकाल कर आधुनिक मंच पर लाकर खड़ा किया। उन्हें इसी वर्ष गणतंत्र दिवस पर पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। इसके पहले वे पद्मश्री (1987) और पद्म भूषण (2010) भी प्राप्त कर चुकी थीं।
पीएम मोदी ने जताया शोक
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके निधन पर शोक जताते हुए उन्हें एक “उत्कृष्ट सांस्कृतिक प्रतीक” बताया। उन्होंने कहा, “कथक और भारतीय शास्त्रीय नृत्यों के प्रति उनका जुनून उनके कार्यों में झलकता है। उन्होंने नर्तकियों की कई पीढ़ियों को पोषित किया।”
गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने भी शोक व्यक्त करते हुए कहा कि “उन्होंने शास्त्रीय कला में गुजरात और भारत का गौरव बढ़ाया।”
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परंपरा की बंदिशों को तोड़ कर रचा नया कथक
1929 में जन्मी कुमुदिनी लाखिया(Kumudini Lakhia) ने अपने करियर की शुरुआत राम गोपाल के साथ की और फिर पंडित शंभू महाराज जैसे दिग्गजों से प्रशिक्षण लिया। उन्होंने नृत्य को सिर्फ प्रदर्शन नहीं, एक बौद्धिक और आत्मिक अन्वेषण माना।
उनकी प्रमुख रचनाएं ‘धबकर’, ‘युगल’ और ‘अताह किम’ भारतीय नृत्य में आधुनिकता और परंपरा का दुर्लभ संगम मानी जाती हैं। उन्होंने कथक को समूह प्रस्तुति की नई दिशा दी, जो पहले सिर्फ एकल प्रदर्शन तक सीमित था।
कदम्ब सेंटर से शुरू हुआ आंदोलन
1967 में अहमदाबाद में ‘कदम्ब सेंटर फॉर डांस’ की स्थापना कर उन्होंने कथक की नई पीढ़ी तैयार की। अदिति मंगलदास, वैशाली त्रिवेदी, संध्या देसाई, मौलिक शाह जैसे दर्जनों नामी कलाकार उनकी शिष्य परंपरा का हिस्सा हैं।
अदिति मंगलदास कहती हैं, “कुमीबेन ने हमें सिखाया कि परंपरा कोई पिंजरा नहीं, एक आधारभूमि है – जहां से अपने पंख फैलाए जा सकते हैं।”
मल्लिका साराभाई ने उन्हें “नर्तकियों की नहीं, विचारकों की गुरु” बताया। वहीं पंडित पुरु दाधीच ने उन्हें “आधुनिक भारत की सांस्कृतिक आत्मा की प्रतिनिधि” कहा।
नृत्य के परे एक भाव
कुमुदिनी लाखिया ने न केवल मंच पर, बल्कि फिल्मों में भी योगदान दिया। उन्होंने 1981 की फिल्म ‘उमराव जान’ में गोपी कृष्ण के साथ कोरियोग्राफी की थी।
न्यूयॉर्क स्थित बैटरी डांस कंपनी के संस्थापक जोनाथन हॉलैंडर ने उन्हें “ऐसी कलाकार” बताया, “जिनकी कला सीमाओं से परे संवाद करती थी।”
अब जब घुंघरू की वो लय थम गई है, तब भी उनकी कला पीढ़ियों के ज़ेहन में गूंजती रहेगी – नृत्य में, स्मृति में और गति में।