Central Government : देश की जेलों में तक़रीबन 5.75 लाख क़ैदी बंद हैं लेकिन आप जानकर हैरान होंगे कि इनमें 75 फ़ीसदी कैदियों के मुक़दमे अभी भी चल रहे हैं मतलब कि उनको सजा नहीं हुई है लेकिन फिर भी वे जेल में बंद हैं और कई सालों से बंद हैं देश की सबसे मशहूर जेलों में से एक तिहाड़ जेल की अगर बात करें
तो यहाँ पर तक़रीबन 10 हज़ार क़ैदियों की क्षमता है लेकिन यहां 14 हज़ार क़ैदी बंद हैं सबसे ज़्यादा क़ैदी उत्तर प्रदेश में बंद हैं जहाँ पर यह आंकड़ा 76 हज़ार तक पहुँच चुका है वहीं अगर बिहार की बात करें तो 45 हज़ार ,मध्य प्रदेश में 39 हजार, महाराष्ट्र में 60 हज़ार और बंगाल में 37 हजार क़ैदी बंद हैं अब इन हज़ारों लाखों कैदियों को (Central Government) केंद्र सरकार 26 नवंबर को संविधान दिवस पर एक बड़ी ख़ुशख़बरी देने वाली है केंद्र सरकार(central government) ने सभी राज्यों को निर्देश दिए हैं
एक विशेष अभियान के तहत जिन कैदियों के ऊपर आरोपों में संभावित सजा की आधी से अवधि पूरी हो चुकी है तो उन्हें ज़मानत मिलनी चाहिए नए क़ानून की धारा 479 के अनुसार यह सारा कार्यक्रम देश के 26 नवंबर को संविधान दिवस के मौक़े पर पूरा होगा केंद्र सरकार का प्लान है कि राज्य नए बने भारतीय न्याय संहिता के तहत विचाराधीन कैदियों को ज़मानत दें
राज्यों को जारी हुई एडवाइजरी, चलेगा विशेष अभियान
गृह मंत्रालय ने इस संबंध में सभी राज्यों के सचिवों और जेल प्रशासकों को एडवाइजरी जारी कर दी है इसमें कहा गया है कि 26 नवंबर को संविधान दिवस के मौक़े पर सभी विचाराधीन कैदियों को ज़मानत देने का अभियान चलाया जाए साथ ही गृह मंत्रालय ने ऐसे कैदियों का ब्यौरा भी माँगा है
अनुमान के अनुसार क़रीब एक तिहाई कैदी सजा का आधे से अधिक समय जेल में बिता चुके हैं तो ऐसे कैदियों को 26 नवंबर को बाहर आने का मौक़ा सरकार दे सकती है और अगर आंकड़ों की बात करें तो देश भर में तक़रीबन दो लाख क़ैदी इस अभियान के तहत छोड़े जा सकते हैं
पहली बार के अपराध में एक तिहाई सजा काट चुके विचाराधीन कैदियों की संख्या भी तिहाई से ज़्यादा है सुप्रीम कोर्ट ने भी बीते 23 अगस्त को अदालतों को ऐसे कैदियों को ज़मानत देने का आदेश दिया था और यह प्रावधान 1 जुलाई 2024 से पहले के कैदियों पर भी लागू होगा
सुप्रीम कोर्ट का राज्यों को आदेश नीतियों के मानक तय करें(Central Government)
देश की सर्वोच्च अदालत ने राज्यों को जेल में बंद दोषियों को सजा में स्थायी छूट देने की नीतियों के मानक तय करने और इसमें पारदर्शिता लाने को को कहा है जज ओक और जज एके मसीह की पीठ द्वारा निर्देश जारी किए गए हैं
जिसमें कहा गया है कि सजा में स्थायी छूट की नीतिगत सूचना तक अधिक पहुँच सुनिश्चित करने, फैसलों के बारे में समय पर जानकारी देने और मनमानी से बचने के लिए प्रत्येक मामले पर उसकी परिस्थितियों के हिसाब से विचार को अनिवार्य बनाया गया है कोर्ट ने यह भी कहा कि जेल अधिकारी पात्र सजायाफ्ता कैदियों को नियमों की जानकारी भी दें
देश में उठती रही कैदियों के हक की आवाज
देश में मानवाधिकार संगठनों द्वारा दशकों से इस बात को लेकर माँग रखी जाती रही है कि जिन कैदियों पर आरोप साबित नहीं हुए हैं या जिन को कोर्ट ने दोषी नहीं माना है उन्हें लंबे समय तक जेल में रखना मानवाधिकार का उल्लंघन है इसलिए कोर्ट को चाहिए कि वे हर मामले की जल्द से जल्द सुनवाई पूरी करें
और फ़ैसले का निर्णय दें जिससे की कोई भी निर्दोष व्यक्ति को जेल में लंबे समय तक रहना ना पड़े क्योंकि इससे निर्दोष क़ैदी की इज़्ज़त और जीवन दोनों ही बर्बाद होता जाता है