ऑटिज़्म: हर भारतीय माता-पिता को जानने चाहिए ये ज़रूरी सच — डॉक्टर ने तोड़े सबसे बड़े झूठ!
भारत में आज लगभग 20 लाख बच्चे ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम पर हैं, फिर भी इस स्थिति को लेकर गलतफहमियाँ और डर बहुत गहरा है। कई माता-पिता शुरुआती संकेतों को पहचान नहीं पाते, तो कई लोग समाज के डर से मदद लेने में झिझकते हैं। डॉक्टरों का कहना है कि ऑटिज़्म कोई बीमारी नहीं, बल्कि एक न्यूरोलॉजिकल डेवलपमेंटल कंडीशन है, जिसे सही समय पर पहचाना और समझा जाए, तो बच्चे बेहतरीन तरह से आगे बढ़ सकते हैं।
आइए जानते हैं ऑटिज़्म से जुड़े वो तथ्य जिन्हें हर भारतीय माता-पिता को ज़रूर जानना चाहिए।
1. शुरुआती संकेत — जिन्हें नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए
भारत में 2–9 साल के लगभग हर 65 में से 1 बच्चा ऑटिज़्म के संकेत दिखाता है। डॉक्टर बताते हैं कि कुछ शुरुआती संकेत इस प्रकार हैं:
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16 महीने तक बोलना शुरू न करना
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आंखों में कम संपर्क
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हाथ फड़फड़ाना, बार-बार घूमना या चीज़ों को लाइन में लगाना
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अपने नाम पर कम प्रतिक्रिया देना
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बहुत कम जेस्चर जैसे– इशारा करना, हाथ हिलाना
इन संकेतों पर तुरंत विशेषज्ञ से जांच करानी चाहिए क्योंकि जल्दी पहचान मतलब जल्दी सुधार।
2. मिथक 1 — “ऑटिज़्म वाले बच्चे बुद्धिमान नहीं होते”
यह सबसे बड़ा भ्रम है!
सच्चाई:
वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि कम बोलने वाले या बिल्कुल न बोलने वाले कई ऑटिस्टिक बच्चे बहुत मजबूत नॉन-वर्बल इंटेलिजेंस रखते हैं।
कई बच्चे गणित, मेमोरी गेम्स, कला, संगीत या लॉजिक-आधारित कार्यों में सामान्य बच्चों से भी आगे निकल जाते हैं।
मिथक 2 — “खराब पैरेंटिंग से ऑटिज़्म होता है”
भारत में यह गलतफहमी अब भी बहुत फैली हुई है।
सच्चाई:
ऑटिज़्म का पालन-पोषण से कोई संबंध नहीं।
यह जन्म से पहले या जीवन के शुरुआती वर्षों में दिमाग के विकास में होने वाले न्यूरोलॉजिकल बदलावों की वजह से होता है।
माता-पिता की प्यार देने की क्षमता से इसका कोई लेना-देना नहीं।
मिथक 3 — “हर ऑटिस्टिक बच्चे में बुद्धि की कमी होती है”
यह भी गलत है।
सच्चाई:
अधिकतर ऑटिस्टिक बच्चों में इंटेलेक्चुअल डिसएबिलिटी नहीं होती।
लगभग 2 में से 1 ऑटिस्टिक बच्चा औसत या औसत से बेहतर बुद्धिमत्ता रखता है।
हर बच्चे की क्षमता और ज़रूरत अलग होती है।
3. भारत में देरी क्यों होती है डायग्नोसिस में?
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जागरूकता की कमी
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सामाजिक शर्म और कलंक
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विशेषज्ञों तक पहुंच कम
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परिवार का “बच्चा बड़ा होकर ठीक हो जाएगा” सोच लेना
हालाँकि अब भारत में सरकार की पहलें जैसे सर्व शिक्षा अभियान, स्पेशल एजुकेटर्स, और कई निजी संस्थानों की मदद से स्थितियाँ बेहतर हो रही हैं।
4. शुरुआती हस्तक्षेप — बदलाव यहीं से शुरू होता है
अगर बच्चे को समय पर थेरेपी मिले—
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स्पीच थेरेपी
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बिहेवियर थेरेपी (ABA)
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ऑक्युपेशनल थेरेपी
तो बच्चा सामाजिक रूप से, भावनात्मक रूप से और सीखने में बहुत आगे बढ़ सकता है। कई बच्चे स्कूलों में भी उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हैं।
5. माता-पिता के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात
ऑटिज़्म कोई रुकावट नहीं, एक अलग तरह का विकास है।
बच्चों को सहारे की ज़रूरत है, शर्म या तुलना की नहीं।
उन्हें प्यार, समझ और सही मदद मिले तो वह एक खुशहाल और सफल जीवन जी सकते हैं।








