New controversy over Dharavi redevelopment plan : महाराष्ट्र की महत्वाकांक्षी धारावी पुनर्विकास योजना एक बार फिर विवादों में घिर गई है।
हालिया मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि धारावी की झुग्गियों में रह रहे 50,000 से 1 लाख लोगों को मुंबई के देवनार इलाके में स्थित ‘एक्टिव लैंडफिल’ पर बसाने की तैयारी है। यह खुलासा एक RTI के ज़रिए हुआ है, जिसे अधिकारियों ने भी सत्यापित किया है।
देवनार: कचरे का ढेर या पुनर्वास का नया ठिकाना?
देवनार लैंडफिल देश के सबसे बड़े और सबसे जहरीले कचरा डंपिंग ग्राउंड्स में से एक है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, यह साइट हर घंटे औसतन 6,202 किलोग्राम मीथेन गैस उत्सर्जित करती है, जो इसे भारत के टॉप 22 मीथेन हॉटस्पॉट में से एक बनाता है।
इस एक्टिव लैंडफिल से न केवल ज़हरीली गैसें निकलती हैं, बल्कि इसका लीचेट (तरल कचरा) स्थानीय पानी और हवा को भी गंभीर रूप से प्रदूषित करता है। इसके बावजूद, धारावी(Dharavi) निवासियों को यहां पुनर्वासित करने का प्रस्ताव सामने आया है।
कांग्रेस का तीखा हमला: “गरीब मरे तो मरे, मोदी को नहीं फर्क पड़ता”
इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उद्योगपति गौतम अडानी पर जोरदार हमला बोला। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि अडानी समूह, धारावी के लोगों को उजाड़ कर वहां अमीरों की नई दुनिया बसाना चाहता है।
कांग्रेस के मुताबिक, “1 लाख गरीब भारतीयों को जहरीली जगह पर जबरन शिफ्ट किया जा रहा है, ताकि अडानी के सपनों की धारावी बनाई जा सके। मोदी सरकार को फर्क नहीं पड़ता, गरीब मरे तो मरे।”
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पर्यावरणीय नियमों की अनदेखी?
सीपीसीबी (केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड) के 2021 के दिशानिर्देशों के मुताबिक, किसी भी बंद लैंडफिल के अंदर अस्पताल, आवास और स्कूल नहीं बनाए जा सकते और 100 मीटर का नो-डेवलपमेंट ज़ोन होना चाहिए। लेकिन देवनार एक सक्रिय लैंडफिल है, जो इन नियमों के बिल्कुल खिलाफ है।
पुनर्विकास या विस्थापन?
धारावी(Dharavi) की 600 एकड़ जमीन में से 296 एकड़ भूमि को अडानी समूह के साथ मिलकर धारावी डेवलेपमेंट प्रोजेक्ट के तहत विकसित किया जा रहा है। इसमें इन-सीटू (स्थानीय) और एक्स-सीटू (स्थानांतरित) पुनर्वास की योजना है, जिसकी जिम्मेदारी वरिष्ठ IAS अधिकारी एसवीआर श्रीनिवास संभाल रहे हैं।
परंतु विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस तरह की बड़ी संख्या में आबादी को एक खतरनाक इलाके में विस्थापित करना न सिर्फ मानवाधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि एक सामाजिक और स्वास्थ्य आपदा को भी न्योता देना है।